किसी भी लोकतांत्रिक देश को चलाने के लिए कानून और सटीक न्याय व्यवस्था की जरूरत होती है जिस के मामले में हमारा देश भारत सबसे आगे आने वाले देशों में से एक है क्योंकि हमारे देश की न्याय व्यवस्था दुनिया की सबसे प्रबल न्याय व्यवस्था में गिनी जाती है। हमारे देश में रहने वाले हर नागरिक को देश की न्याय व्यवस्था से जुड़ी चीजों के बारे में पता होना चाहिए जिनमें से एक ‘कोर्ट में मुकदमा कैसे करें’ अर्थात ‘कोर्ट में मुकदमा करने की प्रक्रिया’ भी शामिल है। अगर आप उन लोगों में से एक हो जिन्हे इस विषय में जानकारी नहीं हैं तो यह लेख पूरा पढ़े।
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मुकदमा क्या होता हैं?
जो लोग कानून के क्षेत्र से तात्पर्य नहीं रखते हैं अर्थात जिन्होंने इस क्षेत्र में पढाई नहीं की होती है और जो इस क्षेत्र में रूचि नहीं रखते उन्हें अक्सर यह भी पता नहीं होता की आखिर मुकदमा क्या होता हैं? तो अगर आप भी मुकदमें के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते हैं तो बता दे की कानून में मुकदमा एक प्रकार की न्यायिक क्रिया होती हैं जो किसी न्यायालय अर्थात कोर्ट के सामने या फिर कहा जाये तो कोर्ट की उपस्थिति में की जाती हैं। इसे अंग्रेजी में ‘केस’ कहा जाता हैं।
न्यायलय में मुकदमा एक अभ्यर्थी या फिर कहा जाए तो पीड़ित के द्वारा किया जाता हैं जिसमे वह प्रतिवादियों पर आरोप लगता हैं। इसके बाद मुकदमा चलता हैं और पीड़ित की शिकायतों के अनुसार प्रतिवादी भी अपने पक्ष से सफाई देते है। यदि अभ्यर्थी सही साबित हो जाता हैं और यह साबित हो जाता हैं की प्रतिवादियों के द्वारा अपराध किया गया हैं तो न्यायलय के द्वारा अभ्यर्थी के अधिकारों को लागु करवाने और क्षतिपूर्ति दिलवाने के लिए आदेश देता हैं।
मुकदमा क्यों दर्ज किया जाता हैं?
जो लोग कानून की समझ नहीं रखते उन्हें कई बार कई सामान्य बातो के बारे में जानकारी नही होती जैसे की मुकदमा क्या होता हैं और क्यों दर्ज करवाया जाता हैं। मुकदमा क्या होता हैं के बारे में तो हम आपको जानकारी दे चुके हैं लेकिन यह क्यों दर्ज किया जाता हैं इसके बारे में भी कई लोगो को जानकारी नहीं होती। दरअसल किसी भी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया जाता हैं तो वह मुकदमा करता हैं।
मुकदमा कैसे करे
कोर्ट दो तरह के मामलो की सुनवाई करता हैं जिसमे से पहले आपराधिक मामले और दूसरे मामले होते हैं सिविल मामले। सबसे पहले अगर बात की जाये आपराधिक मामलो की यह वह मामले होते हैं जिनका उद्देश्य पीड़ित को न्याय दिलाना और अपराधी को सजा देना होता हैं।
- जब भी कोई पीड़ित पक्ष के द्वारा अपराध को लेकर एफआईआर करवाई जाती हैं तो वहा से मुकदमा शुरू होता हैं।
- लेकिन अगर बात की जाये सिविल मामलो की तो यह वह मामले होते हैं जिनमे संपत्ति पर कब्ज़ा करना, परिवार से जुड़े मामले, मानहानि के मामले, चेकबाऊंस के और कॉपीराइट के मामले जैसे व्यवहारिक मामले शामिल होते हैं। अब अगर बात की जाए की ‘कोर्ट में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया’ अर्थात ‘कोर्ट में मुकदमा कैसे करें’ के बारे में तो इसके लिए एक पूरी क़ानूनी प्रक्रिया का अनुसरण करना होता हैं जिसमे वकील और एडवोकेट आपकी मदद कर सकते हैं।
- मुकदमा दर्ज करने के लिए जो व्यक्ति मुकदमा दर्ज कर रहा हैं उसके अधिकारों का उल्लंघन होना चाहिए और किसी व्यक्ति के या समूह के द्वारा उसके अधिकारों का उल्लंघन होना चाहिए। जो व्यक्ति मुकदमा दायर या दर्ज करता हैं उसे वादी कहा जाता हैं और जिस व्यक्ति के द्वारा मुकदमा दायर करने वाले व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन किया जाता हैं उसे प्रतिवादी कहा जाता हैं।
- कोई भी मुकदमा दायर करने से पहले इस बात का पता करना होता हैं की जो मुकदमा दर्ज या फिर कहा जाये तो दायर किया जा रहा हैं वह कौनसे कोर्ट या न्यायालय से सम्बंधित हैं क्युकी हर कोर्ट का क्षेत्राधिकार भौगोलिक स्थिति के अनुसार और रुपयों की सीमा के अनुसार अलग होता हैं। जब एक बार यह पता कर लिया जाता हैं की किस कोर्ट में मुकदमा दायर करना होता हैं तो कुछ स्टेप्स में मुकदमा दायर किया जाता हैं।
- वादी के द्वारा मुकदमा दायर करने के लिए अर्थात केस दर्ज करने के लिए सबसे पहले जो कार्य किया जाता हैं वह होता हैं वादपत्र तैयार करवाना। इस वादपत्र को सामान्य भाषा में ‘दावा’ भी कहा जाता हैं। इस वादपत्र में वादी और प्रतिवादी के पुरे नाम और पते अंकित किये जाते हैं और वह दावा किस अधिनियम और प्रावधान के अंतगर्त लाया जा रहा हैं, उसकी जानकारी अंकित की जाती हैं।
- इसके अलावा वादपत्र में ही वादी की स्टोरी अर्थात उसकी समस्या को संक्षेप में लिखते हुए उसके क्या अधिकार है और प्रतिवादी के द्वारा उसका कैसे हनन किया गया हैं, किस जगह पर, किस दिनांक पर किया गया, ये सभी बाते अंकित जाती हैं। इसके अलावा कोर्ट किस अधिकार के अंतगर्त सुनवाई कर सकता हैं और वादी को क्या अपेक्षा हैं जैसी बाते भी दावे में लिखी जाती हैं।
- इसमें वादी के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान भी अंकित किये जाते हैं। दावे को बनाने में अक्सर वकील आदि की मदद ली जाती हैं। इसके अलावा वादपत्र को तैयार करने के लिए आवश्यक दस्तावेज आदि भी दावे में शामिल किया जाते हैं। वादी को वादपत्र के समर्थन में ही एक शपथ पत्र भी तैयार करके पेश करना होता हैं। इसके बाद जिस वकील के द्वारा वादी चुनाव लड़ने वाला हैं, उस वकील के नाम से एक वकालतनामा तैयार किया जाता हैं।
- इसके बाद यह वादपत्र, और अन्य सभी जरुरी दस्तावेज जिन पर वादी निर्भर करता हैं और मुकदमा दर्ज करना चाहता हैं, निर्धारित प्रारूप में फाइल के रूप में तैयार करके कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने पेश कर दिया जाता हैं। उसके द्वारा इस बात की जांच की जाती हैं क्या वह फाइल प्रावधानों के अनुसार पेश की गयी हैं या नहीं। यदि सब कुछ सहीं से हुआ हैं तो केस दर्ज कर दिया जाता हैं और अगर कोई कमी रहती हैं तो वादी को उसमें सुधर हेतु समय दिया जाता हैं जिसके बाद केस दर्ज कर लिया जाता हैं।
मुकदमा दर्ज करने के बाद क्या होता हैं?
मुकदमा क्या होता हैं, मुकदमा क्यों किया जाता हैं और कोर्ट में मुकदमा कैसे करे जैसे विषयो के बारे में तो हम जानकारी प्राप्त कर चुके हैं लेकिन अब यह जानना भी जरुरी हैं की आखिर मुकदमा दर्ज करने के बाद क्या होता हैं? दरअसल कोर्ट में मुकदमा दर्ज करने के बाद जब रजिस्ट्रार के द्वारा केस को रजिस्टर कर दिया जाता हैं तो प्रतिवादी को सम्मन भेजा जाता हैं अर्थात उन्हें बताया जाता हैं की आपके खिलाफ मुकदमा किया गया हैं और आपको कोर्ट आना पड़ेगा।
सम्मन मिलने के बाद प्रतिवादी को 30 दिन के अंतगर्त कोर्ट में आकर जवाब पेश करना होता हैं और अगर वह ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं तो कोर्ट उसे अधिकतम 60 दिन का समय प्रार्थना करने पर दे सकता हैं। प्रतिवादी को अपने जवाब के अनुसार सारे दस्तावेज भी कोर्ट को लाकर दिखाने होते हैं। अगर प्रतिवादी के द्वारा ऐसे तथ्य सामने लाये जाते हैं जो वादपत्र में ना हो तो वादी पक्ष को प्रत्युत्तर करने का मौका मिलता हैं।
इस तरह से कोर्ट परखता हैं की आखिर वादी और प्रतिवादी के मध्य विवाद किन मामलो को लेकर हैं और इसमें क्या मुख्य बिंदु हैं। इसके बाद कोर्ट के द्वारा इश्यूज बनाये जाते हैं और पक्षों के वाद-विवाद के आधार पर उन्हें सेटल किया जाता हैं। इसके बाद गवाहो और सबूतों की बारी आती हैं जिसमे पहले वादी के गवाहो और सबूतों को देखा जाता हैं और फिर बाद में प्रतिवादी के।
इसके बाद आर्ग्युमेंट की बारी आती हैं जिसके दौरान कोर्ट के द्वारा एक तारीख तय की जाती हैं जिस पर दोनों पक्षों के अधिकवक्ताओ के द्वारा अपना अपना पक्ष रखा जाता हैं। इस दौरान दोनों पक्षों के बिच में आर्ग्युमेंट होता हैं जिसमे पहले वादी के पक्ष को सूना जाता हैं और फिर प्रतिवादी के पक्ष को। इस चरण के पूरा होने के बाद कोर्ट निर्णय लेता हैं और फैसला सुनाता हैं। कोर्ट को निर्णय लेना होता हैं। इस तरह से मुकदमा पूरा होता हैं।
कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश या फिर कहा जाए तो सुनाए गए फैसले के अनुसार दोनों पक्ष आगे कार्य करते हैं और अपने मामले का निपटारा करते है। अगर कोर्ट किसी कारण से फैसला नहीं सूना पाता तो वह एक बार फिर दलीले सुनकर निर्णय लेने का अधिकार रखता हैं। कई बार विभिन्न कारणों की वजह से मुक़दमे काफी लम्बे खिंच जाते हैं जिसमे वादी-प्रतिवादी पक्षों की बीमारी, वृद्धावस्था, मौत और गवाहों की बीमारी, वृद्धावस्था और मौत आदि कारण शामिल हैं।
निष्कर्ष!
भारत का नागरिक होने के नाते हर व्यक्ति को संविधान और कानून से जुड़ी हुई जानकारी होनी चाहिए। जो लोग कानून और संविधान के क्षेत्र में पढाई नहीं कर रहे हैं उन्हें भी कम से कम मुक़दमे जैसे महत्वपूर्ण विषय के बारे में तो सामान्य ज्ञान होना चाहिए। यही कारण हैं की हमने यह लेख तैयार किया हैं जिसमे हमने मुकदमा क्या होता हैं, मुकदमा क्यों किया जाता हैं और मुकदमा कैसे करे – कोर्ट में मुकदमा कैसे करें जैसे विषयो के बारे में आसान भाषा में पूरी जानकारी देने की कोशिश की हैं।